१.
साफ–स्वच्छ
गोधन के गोबर से
लिपा हुआ गोर आंगन
उस और
तीन पत्थर के चूल्हे
पर रखा था
मिटटी से लिपा
आग से जला
२.
यहाँ–वहाँ से
पिचका हुआ
उपर चारो ओर
कहीं -कहीं
दरारों से उचका
दुपहरी के
शांत वातावरण में
उपेक्षित पड़ा था
वह काला भगौना |
३.
चुन चुन कर
छोटी-मोटी
लम्बी या पतली
सुखी लकड़ियों का
हाथों और पैरों को
खुरच खरोंच कर
लाये गये लकड़ियों
के गठ्ठर से जलता
काला भगौना |
४.
पतली दाल
पानी से सजी
चावल से भीगी
चूले से उठते हुए
धुएं से
आँखों से निकलने वाले
खारे पानी को सोकता
पेट की आग के लिए
जलता काला भगौना |
५.
रोज राह ताकता
सुबह श्याम
या कभी-कभी
एक जून
जलने के लिए
तरसता
भूका ,प्यासा
तैयार बैठता
काला भगौना |
६.
सपने देखता कभी तो बदलेगी
एक -सी अनिवार्य
चावल –दाल
ऊँचे पक्के मकानों में
किचन-गैस-सिगड़ी पर
इत्मिनान से पकते पकवान
चमकते भगौने
को मुह लटकाया-सा
काला भगौना |
७.
अपनी असमर्थता
पर अकेले में
सूखे आंसू बहाता
झुकी हुई झोपडी
का दर्द देख कर
तूफान के बहाने
लुडक जाता
दिशा बदलता
काला भगौना |
8.
कई भगौने
लुडक जाते हैं
बरसात में भीग जाते हैं
सर्दियों में सिकुड़
ठण्ड से अकड जाते हैं
गर्मियों में उबल
गरम अंगारे बन जाते हैं
प्रहारों पर प्रहार सहते
जिन्दगी का गीत गाते हैं |